गंगा विलुप्त होने को है


क्या जल-प्रलय का मिथक सच होने को है ? क्या जीवनदायनी, पतितपावनी गंगा विलुप्त हो जायेगी ? क्या हम वापस भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के ज़माने में जा रहे हैं ?
हालातों को देख कर तो ऐसा ही लगता है।
हिमांछादित चोटियां तेजी से नंगी हो रही हैं. बर्फ पिघलती जा रही है. जे.एन.यू. के सैयद हसनैन के शोधपत्र इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्नो एंड आइस (International Commission on Snow and Ice) में खुलासा किया गया है कि गंगोत्री ग्लेशियर यदि ऐसे ही पिघलता रहा तो अगले 35 सालों में यह गायब हो जाएगा. टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक डॉ. आर.के. पचौरी और नेपाल में हाइड्रोलोजी के निदेशक डॉ. मदन श्रेष्ठ का कहना है कि गंगा को बनाने वाले ग्लेशियर इस शताब्दी के ख़त्म होते-होते ही सूख जायेंगे. यदि ऐसा है तो ज़ाहिर है कि गंगा कैसे जिंदा रहेगी?
एक अन्य अध्ययन के अनुसार हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले स्थित चन्द्र घाटी में "बड़ा शिग्री" दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है और यह हर साल 10 मीटर की दर से सिकुड़ रहा है, जबकि राज्य में कई अन्य जगहों पर बिखरे छोटे ग्लेशियर 20 से 30 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहे हैं. गंगा को जीवित रखने वाली उत्तराँचल की हिमनदियों (ग्लेशियर) के सिकुड़ने की दर 3.7 से 21 मीटर प्रति वर्ष तक बताई गई है. इस पिघलन के कारण पहाडों में छोटी-बड़ी झीलें बनना शुरू होगई हैं जैसा कि पारछू (चीन) के मामले में हुआ था. इस प्रकार की 228 झीलों का तो पता भी लग चुका है. इनमें से 22 अनुप्रवाह (downstream) स्थित इलाकों के लिए घातक मानी गई हैं. बर्फ के लगातार पिघलने से इनका क्षेत्रफ़ल भी खतरनाक रूप से बढ़ रहा है. यह कभी भी फ्लैशफ्ल्ड्स (अचानक आने वाली बाढ़) लाकर तबाही मचा सकती हैं.वैज्ञानिकों ने अगले 15-20 वर्षों के लिए चेतावनी दी है कि बाढ़ आने की दर में वृद्धि होगी और ख़ास तौर पर "गिओपांग गाथ" ग्लेशियर के कारण जो झील बनी है वह पिछले बीस वर्षों में 0.27 किलोमीटर से बढ़ कर 0.47 किमी क्षेत्रफल में फ़ैल चुकी है.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च के उपमहानिदेशक डॉ. जे.एस. समरा का कहना है कि अभी तक हिमालय पर्वत श्रंखला में कुल मिला कर 7,000 के लगभग हिमनदियों की पहचान की गयी है जिनमें से 3,252 नेपाल में और 2,550 अकेले हिमाचल प्रदेश में हैं. भूटान में 676 ग्लेशियर मिले जबकि शेष उत्तरांचल, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश में हैं. हिमांचल में जो हैं उनमें 386.3 क्यूबिक किमी. बर्फ का भण्डार है जो अपने देश में इस्तेमाल किये जाने वाले कुल पानी का 18 प्रतिशत है. इतना ही नहीं देश में जो भी पानी उपलब्ध है उसका 60 से 70 फीसदी इन्हें हिमनदों से मिलता है.
जम्मू तथा कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली को पानी पहुंचाने वाली उत्तर भारत की प्रमुख नदियों, मसलन बियास, रावी, चिनाब तथा सतलुज को 4160.50 किमी. में फैले 2,554 ग्लेशियरों से पानी मिलता है. सतलुज बेसिन में सबसे अधिक 945 इस प्रकार की हिमनदियां हैं, जबकि दूसरे व तीसरे नंबर पर चिनाब तथा बियास के बेसिन आते हैं. पंजाब, हरियाणा व राजस्थान की तो सारी अर्थव्यवस्था ही इन नदियों पर टिकी हुई है. ऐसे में ग्लेशियरों के विलुप्त होने का अर्थ क्या हो सकता है इसका अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है.

बाबा राम देव तालिबानी राह पर


तालिबानी नज़रिया सिर्फ तालिबान ही नहीं रखते, दूसरे धर्मों के ठेकेदार भी इस होड़ में पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। आप बाबा रामदेव को ही ले लीजिये। लगता है उनकी पब्लिसिटी की भूख काफी बढ़ गयी है। शायद यही कारण है कि राजनेताओं द्वारा त्याग दिए जाने के बाद अब वे बॉलीवुड तारिकाओं की जिंदगियों में न केवल ताकने-झाँकने लगे हैं बल्कि उन्हें चरित्रहीनता के प्रमाण-पत्र भी बांटने लगे हैं।
अभी हाल में उनके मुखारविंद से जो सुवचन निकले उन्होंने तालिबानी फतवों की याद दिला दी। अपने एक योग शो के दौरान उन्होंने कहा "बॉलीवुड एक्टर्स चरित्रहीन होते हैं।" आगे कहना था "घोर कलयुग आ गया है। अब हमारे बच्चे इन नाचने-गाने वालों को आदर्श समझने लगे हैं। पहले के ज़माने में इनको भांड कहा जाता था, अब ये ही बड़े स्टार बन गए हैं।" योगीजी महाराज आगे बोले "लोग समझते हैं ये सब बड़ी ऐक्ट्रेस हैं, में कहता हूँ ये बड़ी नहीं सड़ी ऐक्ट्रेस हैं। हर फिल्म के साथ इनके पार्टनर बदल जाते हैं।"
योगी के मुंह से ऐसी भाषा ? सुनकर लगता है कि बोलने वाले की कोई कुंठा बाहर आरही है। ऐसी बातों का जवाब भी फिर ऐसा ही होता है। कई अभिनेत्रियों ने इस पर नारजगी ज़ाहिर करते हुए अपनी प्रतिक्रया व्यक्त की है जिसमें सबसे तीखी, तर्कपूर्ण और स्पष्ट सेलीना जेटली की है। उनका कहना है कि राम देव पहले ऐसे ब्रह्मचारी हैं जो महिलाओं के सैक्स जीवन के बारे में काफी जानकारी रखते हैं। उन्हें तो हर औरत को माँ समझना चाहिए। एक अन्य तारिका सम्भावना का कहना है, "सबसे ज्यादा ठरकी और हॉर्नी (horny = सैक्स के प्रति सक्रिय) तो ये साधु और योगी ही होते हैं....... राम देव तो योगी हैं तो फिर उन्हें भोग के बारे में इतना सब कैसे मालूम है ?"
मुझे लगता है कि योगी बाबा राम देव तक का ध्यान अपनी ओर खींचने वाली ये बालाएं जब स्वयं उनके बारे में इतना कुछ कह चुकीं हैं तो फिर मेरा आगे कुछ और लिखना बनता नहीं है। इस लिए मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि किसी भी शख्स को चाहे वह कोई भी हो अपने पैजामे से बाहर नहीं जाना चाहिए। ज्यादा इज्ज़तदार और सम्मानित व्यक्ति को ज्यादा संभल कर बोलना चाहिए। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि जब पेड़ पर फल लद जाते हैं तो वह झुक जाता है अर्थात उसमें विनम्रता आजाती है। कहने का अर्थ है कि ज्ञानी, विज्ञानी, विख्यात और उस पर योगी, सन्यासी को तो बहुत ही संभल कर मुंह खोलना चाहिए। बाबाजी का कार्यक्षेत्र योग है उन्हें स्वयं को वहीं तक सीमित रखना चाहिए, अन्यथा उनकी ऐसी ही बातें उनकी पहचान को खो देंगी।

स्टूल पर बैठी ज़िन्दगी

कल रात मैं देर से सोया था । इस लिए नींद काफ़ी गहरी थी, लेकिन रात पता नहीं क्या हुआ कि सवेरे तकरीबन चार-सवा चार बजे मुझे ऐहसास हुआ कि मैं सपने में शायरी कर रहा हूँ। मज़े की बात यह थी कि मुझे इस बात का ऐहसास हो रहा था कि मैं नींद में शायरी कर रहा हूँ, लेकिन यह भी पता चल रहा था कि जाग भी रहा हूँ, पर बिस्तर छोड़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। इसी सोने जागने में सवेरे के पाँच बज गए। मैंने खिड़की की ओर देखा, पौ फटने लगी थी। चिडियों की आवाजें सुनाई दे रहीं थीं। तभी याद आया कि आज सवेरे पाँच बजे से सूर्य ग्रहण भी है। अंततः मैंने बिस्तर छोड़ना ही ठीक समझा। तुंरत दौड़ कर कागज़-पेन उठाया और जो सपने में देखा था उसे कागज़ पर उतारने बैठ गया :-

टूटे स्टूल पर बैठी ज़िन्दगी
कभी गिरती है, कभी लडखडाती है,
फिर इधर-उधर लोगों की नज़र बचा
वापस स्टूल पर आती है।
बहादुरी का एक टुकडा किसी
हाफ-फ्राई की तरह, सफ़ेद पड़े उसके चेहरे पर भी चिपका है,
जिसे वह खींचतान और फैलाकर सारे बदन पर ओढ़ना चाहती है।
उसे शायद मालूम नहीं कि
टुकडों से रूमाल तो बनाये जा सकते हैं
उसके खेमे नहीं गाडे जा सकते।

महान क्या है -- कर्म या भाग्य?

यह सवाल अक्सर बहस का मुद्दा बनता है कि कर्म प्रधान है या भाग्य? कर्म समर्थक ज़ाहिर है कि कर्म को बड़ा मानते हैं जब कि भाग्यवादी भाग्य को। मुझ से भी कई बार यह सवाल किया जा चुका है जिस कारण मुझे भी इस मसले पर सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा। बहुत सोचने के बाद समझ में यह आया कि इनमें बड़ा-छोटा कोई नहीं है, बल्कि ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यानि यह दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। किसी का कर्म, किसी का भाग्य बन जाता है। इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि एक सूनसान जगह पर आम तोड़ने के लिए पत्थर चला रहे बच्चों का पत्थर यदि पेड़ के पास से गुज़र रहे किसी व्यक्ति के सिर पर लग जाता है तो इसे क्या माना जाएगा ? मैं समझता हूँ कि बच्चों का कर्म उस व्यक्ति का भाग्य बन गया। लड़कों ने उसे चोट पहुंचाने की नियत से पत्थर नहीं चलाये थे, यह महज़ इत्तेफाक था कि वह शख्स वहां से गुज़र रहा था और उसे पत्थर लग गया। जिसे उसका भाग्य या दुर्भाग्य कहा जा सकता है।
ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो मेरी बात के समर्थन में दिए जा सकते हैं। कई बार सड़क के किनारे, अपनी साइड में चलते व्यक्ति को पीछे से आरही गाड़ी टक्कर मार देती है। यह गाड़ी चालाक का कर्म और पैदल चलने वाले का भाग्य था कि दुर्घटना हो गयी।
मृत्युशैया पर पड़ा एक अमीर व्यक्ति, जिसके प्राण निकल रहे हैं और वह बोल नहीं पा रहा। जब उससे पूछा जाता है कि उसकी संपत्ति किसे दी जाए तो वह ऊपर की ओर हाथ उठा, इशारा कर मर जाता है। लोगों को कुछ समझ में नहीं आता और वे उसकी सारी संपत्ति छत पर रहने वाले नौकर को दे देते हैं। उन्हें लगा कि वह उसी की ओर इशारा कर रहा था। कारण यह था कि नौकर ने मृतक की काफ़ी सेवा की थी और दूसरे मरने वाले का कोई रिश्तेदार भी नहीं था। जबकि वास्तव में मरने वाला हाथ उठा कर भगवान् की और इशारा कर रहा था और वह संपत्ति किसी मन्दिर को देना चाहता था। यहाँ भी मरने वाले का कर्म नौकर का भाग्य बन गया।