स्टूल पर बैठी ज़िन्दगी
कल रात मैं देर से सोया था । इस लिए नींद काफ़ी गहरी थी, लेकिन रात पता नहीं क्या हुआ कि सवेरे तकरीबन चार-सवा चार बजे मुझे ऐहसास हुआ कि मैं सपने में शायरी कर रहा हूँ। मज़े की बात यह थी कि मुझे इस बात का ऐहसास हो रहा था कि मैं नींद में शायरी कर रहा हूँ, लेकिन यह भी पता चल रहा था कि जाग भी रहा हूँ, पर बिस्तर छोड़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। इसी सोने जागने में सवेरे के पाँच बज गए। मैंने खिड़की की ओर देखा, पौ फटने लगी थी। चिडियों की आवाजें सुनाई दे रहीं थीं। तभी याद आया कि आज सवेरे पाँच बजे से सूर्य ग्रहण भी है। अंततः मैंने बिस्तर छोड़ना ही ठीक समझा। तुंरत दौड़ कर कागज़-पेन उठाया और जो सपने में देखा था उसे कागज़ पर उतारने बैठ गया :-
टूटे स्टूल पर बैठी ज़िन्दगी
कभी गिरती है, कभी लडखडाती है,
फिर इधर-उधर लोगों की नज़र बचा
वापस स्टूल पर आती है।
बहादुरी का एक टुकडा किसी
हाफ-फ्राई की तरह, सफ़ेद पड़े उसके चेहरे पर भी चिपका है,
जिसे वह खींचतान और फैलाकर सारे बदन पर ओढ़ना चाहती है।
उसे शायद मालूम नहीं कि
टुकडों से रूमाल तो बनाये जा सकते हैं
उसके खेमे नहीं गाडे जा सकते।
8 comments:
खूबसूरत पंक्तियॉ । गागर में सागर।
The best thing that I liked is that teh poem and the full artice is very short. I somewhere read that if we want to make our blog popular we should keep the post short. Secondly the font size is very good very readable.
Last but not hte least your skill is very good and the article is very enjoyable.
Good Luck and Congratulations
Avatar Merher Baba Ji Ki Jai
Chadar Meher
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ब्लाग जगत में स्वागत है। शुभकामनाएं॥
achha hai.........
badhaai !
`उसे शायद मालूम नहीं कि
टुकडों से रूमाल तो बनाये जा सकते हैं
उसके खेमे नहीं गाडे जा सकते।'
अच्छी कविता पंक्तियां।
sapane me ye baat hai to asal me kya hoga. narayan narayan
आनन फानन में लिखे कमाल के शब्द...... बहूत गहरी रचना की उपज .........लाजवाब कविता है
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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